इतनी खतरनाक बीमारी है कि इसके लिए अलग से अस्पताल बनाए गए हैं। रांची में जेल के पास “इनफेक्शियस डिजीज हॉस्पिटल” है जहां सिर्फ रेबीज और टेटनेस से पीड़ित मरीज भर्ती किए जाते हैं। ऐसा क्यों है इसकी चर्चा बाद में करूंगा। पहले टेटनस के बारे में जानते हैं।
टिटनेस क्या है?
टिटनेस क्लास्ट्रीडियम नाम के बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। यह बैक्टीरिया सर्वव्यापी है। कहीं शरीर कटा तो यह घाव के माध्यम से शरीर में पैठ बना लेता है। जंग लगी वस्तु, धूल, मिट्टी जानवरों के गोबर आदि में बहुतायत मे पाया जाता है। जंग लगी वस्तु से कटा या घाव में धूल मिट्टी रह गई तो इसके होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
शरीर में जाने के बाद यह बैक्टीरिया एक टॉक्सिन बनाता है जिससे बीमारी के लक्षण आते हैं। टॉक्सिन का कोई एंटीडोट नहीं है। लक्षणों के आधार पर चिकित्सा की जाती है। बीमारी को शरीर खुद लड़ कर ठीक कर पाया तो जान बची नहीं तो मौत हो जाएगी। रेबीज की तरह यह 100 फीसदी जानलेवा तो नहीं पर एक बार टेटनस हो जाने पर मौत की काफी संभावना होती है। रेबीज ही की तरह मौत काफी तकलीफदेह होती है।
इसके क्या लक्षण हैं?
घाव के जरिए टेटनस का एक्सपोजर होने के करीब 10 दिन में लक्षण आने लगते हैं जो धीरे धीरे बढ़ते जाते हैं। जेनारालाइज टेटनस में शुरुआत मांसपेशियों के दर्द भरे स्पास्म और रिजिडिटि से होती है जो सिर के तरफ से शुरू होती है। जबड़े पर पहले असर होता है। खाना चबा नहीं सकते ना ही अंदर कर पाएंगे। होठों के पास के मसल ऐसे अकड़ जाएंगे जैसे लगेगा कि पीड़ित व्यक्ति लगातार मुस्कुरा रहा है। मांसपेशियों में जकड़न और मरोड़ फिर पूरे शरीर में फैल जाता है।
शरीर धनुष की तरह बन जाता है इसी कारण टेटनस को धनुषटंकार भी कहते हैं। इतनी खतरनाक स्थिति होती है कि पुराने जमाने में इसे भूत प्रेत या देवीय प्रकोप ही समझा जाता था। थोड़ी थोड़ी देर पर ऐसे दौरे पड़ते हैं जब मांसपेशियों में spasm होने लगता है और मरीज के शरीर का आकार धनुष की तरह हो जाता है।
टिटनेस के अस्पताल
ऊपर मैने लिखा था की टिटनेस के मरीजों को रांची में रेबीज के मरीजों के साथ अलग अस्पताल में रखा जाता है। इसका कारण है कि रेबीज की तरह टेटनस के मरीज को भी ताजी हवा के झोंके, रोशनी और तेज आवाज से बचा के रखना पड़ता है। तेज आवाज या रोशनी से इस तरह के दौरे आ जाते हैं इसलिए उन्हें विशेष व्यवस्था में रखा जाता है।
इसे कैसे रोका जा सकता है?
इस जानलेवा बीमारी को होने से वैक्सीन और एंटीटेनस सीरम के माध्यम से पूरी तरह रोका जा सकता है। कभी भी जंग लगी वस्तु से या मैदान में खेलते वक्त कट फट जाए तो उसी समय उपाय कर लीजिए कि टेटनस हो ही नहीं।
एक बार हो गया तो जान जाने की संभावना है वह भी तड़प तड़प के।
टिटनेस का असर कितने दिन में होता है?
चोट से घाव आने के 24 घंटे के भीतर टिटनेस का इंजेक्शन लगवाना जरूरी होता है नहीं तो घाव के जरिए बैक्टीरिया शरीर के अंदर प्रवेश कर सकते हैं और 10 दिनों के अंदर टिटनेस के लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं
टिटनेस की पहचान कैसे की जाती है?
टेटनस के लक्षण :
- मांसपेशियों में अकड़न और ऐंठन, जबड़े में स्थिर मांसपेशियां।
- आपके होठों के आसपास की मांसपेशियों में तनाव, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी लगातार मुस्कराहट होती है।
- मांसपेशियों में ऐंठन और गर्दन में जकड़न।
- पेट की कठोर मांसपेशियाँ
- निगलने की कठिनाइयों
टिटनेस का इंजेक्शन कितने रुपए का आता है?
हमेसा टिटनेस का इंजेक्शन 6 रुपए का मिलता है लेकिन रिटेलर में आपको यह 1 इंजेक्शन 15 से 30 रुपये तक मिल सकता है |
एक टिटनेस इंजेक्शन कितने दिनों तक काम करता है?
पहले दो इंजेक्शन कम से कम चार सप्ताह के अंतर पर लगवाए जाते हैं , और तीसरा इंजेक्शन दूसरे इंजेक्शन के 6 से 12 महीने बाद लगाया जाता है। सारे इंजेक्शन श्रृंखला के बाद, हर 10 साल में बूस्टर शॉट्स की सिफारिश की जाती है ।
डॉक्टर से जाँच कराना ज़रूरी होता है ?
हाँ डॉक्टर से जाँच कराना ज़रूरी होता है और इंजेक्शन तुरंत लगवा लेना चाहिए |
टेटनस, दर्दनाक मांसपेशियों में संकुचन का कारण बनता है, विशेष रूप से जबड़े और गर्दन में. यह सांस लेने की क्षमता में हस्तक्षेप कर सकता है, और अंत में मौत का कारण बन सकता है.
लोगों को यह अनुभव हो सकते हैं:
पूरे शरीर में: उच्च रक्तचाप, तंत्रिका तंत्र का ठीक काम न करना, पसीना आना, या बुखार
मांसपेशी संबंधी: मांसपेशियों की ऐंठन, ऐंठन, चेहरे की मांसपेशी की ऐंठन, या मांसपेशियों में जकड़न
सांस संबंधी तंत्र: बार-बार कुछ समय के लिए सांस रुक जाना या सांस फूलना
यह होना भी आम है: जबड़े अकड़ना, गर्दन की अकड़न, चिड़चिड़ापन, दिल की तेज़ धड़कन, निगलने में परेशानी, पेट का कड़क होना, मुड़ी पीठ और गर्दन के साथ होने वाली ऐंठन, या लार टपकना
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